क्यूँ गला तुम्हारा रूंध रहा, स्वर कम्पन में है किसका भय हर दुःख को तेरे हर लूँगा, हर क्षण पर तेरी होगी जय ।
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इस चंचल नयनों में नीर भरे, वो कौन है निष्ठुर पापी शय अवनत पलकों में छलक रहे, क्यूँ काँप रहे हैं आँसूं द्वय क्यूँ गला तुम्हारा रूंध रहा, स्वर कम्पन में है किसका भय हर दुःख को तेरे हर लूँगा, हर क्षण पर तेरी होगी जय